प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय श्रीलंका दौरे पर हैं. यह उनकी चौथी श्रीलंका यात्रा है. इस दौरान एक बड़ा कदम उठाया गया है, जिसे चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. इस यात्रा में भारत, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ है, जिसके तहत श्रीलंका के त्रिंकोमाली जिले को ऊर्जा हब के रूप में विकसित किया जाएगा. यह जिला श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी हिस्से में स्थित है. एक तमिल बहुल इलाका है. इस प्रोजेक्ट में एक मल्टी-प्रोडक्ट पाइपलाइन भी शामिल होगी, जिससे श्रीलंका के सभी लोगों को फायदा पहुंचेगा. इससे पहले पीएम मोदी ने 2019 में श्रीलंका का दौरा किया था.त्रिंकोमाली का महत्व भारत के लिए बहुत ज्यादा है. यहां का नेचुरल बंदरगाह और ऊर्जा सुविधाएं इसे रणनीतिक रूप से अहम बनाती है. भारत का मानना है कि यहां उसकी मजबूत मौजूदगी से वह उत्तर-पूर्वी हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ा सकता है. यह कदम इसलिए भी जरूरी हो गया था क्योंकि हाल ही में श्रीलंका ने चीन की तेल कंपनी सिनोपेक से 3.7 अरब डॉलर का निवेश हासिल किया है. यह निवेश श्रीलंका के दक्षिणी हिस्से में हंबनटोटा में तेल रिफाइनरी के लिए है और यह देश में अब तक का सबसे बड़ा विदेशी निवेश है. चीन पहले भी श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी हिस्सों, खासकर जाफना प्रायद्वीप के पास के द्वीपों में ऊर्जा परियोजनाओं की संभावनाएं तलाश चुका है. ऐसे में भारत के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह चीन को इन इलाकों में पैर जमाने से रोके.टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समझौते के तहत भारत पहले से ही त्रिंकोमाली के कुछ तेल टैंक फार्म्स को विकसित करने के लिए श्रीलंका के साथ काम कर रहा है. अब नए समझौते से और ज्यादा विकास की राह खुलेगी. विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बताया कि यह ऊर्जा हब श्रीलंका की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा, लोगों को सस्ती दरों पर ऊर्जा उपलब्ध कराएगा और ऊर्जा निर्यात के जरिए देश की आय भी बढ़ा सकता है.