जिंदगी भर छोटे से फ्लैट में रहते रहे तैयब मेहता, 61.8 करोड़ रुपये में बिकी जिनकी पेंटिंग

Tayeb Mehta: भारतीय कला बाजार इस समय अपने सुनहरे दौर से गुजर रहा है. मशहूर ऑर्टिस्ट तैयब मेहता की एक कृति ‘ट्रस्ड बुल’ 61.8 करोड़ रुपये में बिकी है. तैयब मेहता की ये पेंटिंग वैश्विक स्तर पर नीलामी में बिकने वाली दूसरी सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग बन गई. अब यह अमृता शेरगिल की ‘द स्टोरी टेलर’ के बराबर है, जो 2023 में इसी कीमत पर बिकी थी. नीलाम होने वाली भारतीय कला की सबसे महंगी कृति का रिकार्ड एम.एफ. हुसैन की अनटाइटल्ड (ग्राम यात्रा) के नाम है, जो पिछले महीने न्यूयॉर्क में क्रिस्टी की नीलामी में 118 करोड़ रुपये में बिकी थी. 2 अप्रैल को मुंबई में सैफरनआर्ट की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर ये नीलामी हुई. खचाखच भरे हॉल में तैयब मेहता की बनाई बैल की ऑयल पेंटिंग ने इतनी बड़ी रकम हासिल की. सैफरनआर्ट के सीईओ और को-फाउंडर दिनेश वजीरानी ने कहा, “यह भारतीय कला नीलामी के लिए एक वैश्विक रिकॉर्ड है. यह कला बाजार की ताकत को दर्शाता है. यह और भी अधिक सार्थक हो जाता है क्योंकि यह मेहता का शताब्दी वर्ष है.”20महाभारत: युद्ध के बाद गांधारी ने कुंती को दी कौन सी उलाहना, बड़े रहस्य के खुलासे से धमाकाAuthor:संजय श्रीवास्तवLast Updated:April 04, 2025, 16:07 ISTMahabharata Katha : महाभारत के युद्ध के बाद गांधारी को जब कुंती के बारे में एक बड़े रहस्य का पता चला तो वह नाराज भी हुई. उन्होंने कुंती को बड़ी उलाहना भी दी. कुंती इस पर कुछ ज्यादा कहने की स्थिति में न…और पढ़ेंFollow us on Google NewsAdvertisementमहाभारत युद्ध के बाद गांधारी ने कुंती को दी कौन सी उलाहना,रहस्य खुलने से धमाकाहाइलाइट्समहाभारत युद्ध के बाद गांधारी ने कुंती को एक बड़ा रहस्य छिपाने पर उलाहना दी.कुंती ने कर्ण को त्यागने का कारण समाज का भय और अविवाहित स्थिति बताया.गांधारी और कुंती के रिश्तों में बच्चों की बेहतरी के लिए तनाव झलकता रहता थामहाभारत का युद्ध खत्म हो चुका था. गांधारी अपने सभी 100 पुत्रों को खो चुकी थीं. उनका क्रोध आसमान छू रहा था. वो तो पांडवों को भी श्राप देना चाहती थीं लेकिन महर्षि व्यास ने वहां पहुंचकर पांडवों को बचा लिया. हालांकि तब वह कुंती पर गुस्सा जरूर हुईं जब उन्होंने एक ऐसा राज उन्हें बताया, जो लंबे समय से उन्होंने छिपाकर रखा था. गांधारी ने नाराजगी में कुंती को ऐसा उलाहना दिया कि उनके पास कोई जवाब नहीं था. वो चुपचाप सुन ही सकती थीं. हालांकि कुंती की इस राज को जब युधिष्ठिर ने जाना तो वह बुरी तरह नाराज ही हो गए थे.आइए जानते हैं कि गांधारी ने महाभारत के बाद कुंती को क्या उलाहना दी थी. ये उन्हें क्यों दी गई थी. इस पर कुंती की प्रतिक्रिया क्या थी. दरअसल कुंती हमेशा से जानती थीं कि कर्ण उन्हीं का बेटा है. हालांकि कर्ण को जन्म देते ही उन्होंने उसका इसलिए त्याग कर दिया था, क्योंकि तब वह कुंवारी थीं.दुर्वासा ऋषि ने क्या आशीर्वाद दियाकुंती को विवाह से पूर्व ऋषि दुर्वासा ने आशीर्वाद दिया था, जिसके कारण कर्ण का जन्म हुआ. कथा के अनुसार, जब कुंती अपने दत्तक पिता कुंतिभोज के घर पर थीं, तो ऋषि दुर्वासा ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक मंत्र दिया था. इस मंत्र की शक्ति से वह किसी भी देवता का आह्वान करके अपने पास बुला सकती थीं. उनसे पुत्र प्राप्त कर सकती थीं. कौतूहलवश कुंती ने विवाह से पहले ही इस मंत्र का प्रयोग सूर्य देव का आह्वान करने के लिए किया, जिसके परिणामस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ.संबंधित खबरेंद्रौपदी के चीरहरण के बाद क्यों नाराज हुईं कुंती, युधिष्ठर को फटकार, कहा कायरद्रौपदी के चीरहरण के बाद क्यों नाराज हुईं कुंती, युधिष्ठर को फटकार, कहा कायरधृतराष्ट्र और पांडु का भाई होने के बाद भी क्यों विदुर कभी नहीं बन सके राजाधृतराष्ट्र और पांडु का भाई होने के बाद भी क्यों विदुर कभी नहीं बन सके राजाMahabharat: क्यों रहस्यमयी कही जाती हैं युधिष्ठिर की पत्नी, कहीं नहीं दिखती थीMahabharat: क्यों रहस्यमयी कही जाती हैं युधिष्ठिर की पत्नी, कहीं नहीं दिखती थीपांडवों को जलाने के लिए कौरवों ने यहां बनाया था लाक्षागृह, आज टूरिस्ट प्लेसपांडवों को जलाने के लिए कौरवों ने यहां बनाया था लाक्षागृह, आज टूरिस्ट प्लेसलोकलाज के डर से उन्होंने कर्ण को एक टोकरी में रखकर नदी में बहाया, जो अधिरथ सूत को मिली और उन्होंने कर्ण को बेटा समझकर पालापोसा. हालांकि कर्ण में हमेशा से एक खास किस्म की वीरता और तेज रहा.कुंती ने ये रहस्य युद्ध के बाद बतायादरअसल इसका रहस्योदघाटन भी महाभारत के युद्ध के तुरंत बाद भी उन्होंने नहीं किया बल्कि तब किया जबकि महाभारत के मृतकों का तर्पण उनके परिजन कर रहे थे. तभी सहसा शोकाकुल होकर कुंती अपने पुत्रों से बोलीं, अर्जुन ने जिनका वध किया है, तुम जिन्हें सूतपुत्र और राधा का गर्भजात समझते रहे, उस महाधनुर्धर वीरलक्षणों वाले कर्ण के लिए भी तुम लोग तर्पण करो. वो तुम्हारे बड़े भाई थे. सूर्य के औरस से मेरे गर्भ में कवच कुंडलधारी होकर वह जन्मे थे.युधिष्ठिर अपनी मां कुंती पर नाराज होते हुए. (image generation from Leonardo AI)तब युधिष्ठिर भी बहुत नाराज हुएये सुनते ही पांडव पहले स्तब्ध रह गए फिर बहुत दुखी हुए. उन्होंने कहा हमें सौ गुना ज्यादा दुख हो रहा है. उस समय तो युधिष्ठिर ने कर्ण की पत्नियों के साथ मिलकर तर्पण कर दिया लेकिन बाद में अपनी मां से बहुत नाराज हुए. पहली बार अपनी मां को श्राप भी दिया.उन्होंने अपनी माँ कुंती को उलाहना दिया कि “यदि तुमने यह बात पहले ही बता दी होती, तो हम कर्ण को सम्मान देते और यह युद्ध कभी होता ही नहीं!” भीम ने भी यह महसूस किया कि कर्ण को दुर्योधन के पक्ष में खड़ा करने की बड़ी गलती कुंती की ही थी. अर्जुन इस सच्चाई से अंदर तक हिल गए। उन्होंने कहा, “यदि मुझे पहले ही पता होता कि कर्ण मेरा भाई है, तो मैं उसके खिलाफ हथियार नहीं उठाता.” अर्जुन को इस बात का भारी दुःख हुआ कि उन्होंने अपने ही भाई को मार डाला.Generated imageमहाभारत के युद्ध में अपने सभी पुत्रों को खोने के बाद गांधारी नाराज थीं. वो शायद पांडवों को भी श्राप दे देतीं लेकिन वहां पहुंचकर महर्षि व्यास ने पांडवों को बचा लिया. (image generation from News18 AI)गांधारी तो पहले से ही गुस्से से भभकी हुईं थींइस बात को जब गांधारी ने जाना तो उनके अंदर पहले से ही अपने सभी पुत्रों को खोने का गुस्सा भभक रहा था. उन्होंने कुंती को उलाहना देने में एक क्षण की देरी नहीं लगाई. गांधारी ने कुंती को कर्ण के बारे में उलाहना देते हुए कहा था कि यदि कुंती ने कर्ण को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लिया होता. यह बात पहले खुल गई होती, तो शायद युद्ध की भयंकरता को टाला जा सकता था.गांधारी का मानना था कि कर्ण के पांडवों के साथ होने से कौरवों और पांडवों के बीच का संघर्ष कम हो सकता था, क्योंकि कर्ण एक महान योद्धा थे. उसका पांडवों के प्रति स्नेह भी था.तब गांधारी ने कुंती पर क्या आरोप लगायागांधारी ने नाराज होते हुए कुंती पर यह आरोप लगाया कि उसने अपने सबसे बड़े पुत्र को छिपाकर एक बड़ा अपराध किया, जिसके परिणामस्वरूप इतना विनाश हुआ. कुंती ने इस उलाहने का जवाब बड़े संयम और दुख के साथ दिया.कुंती ज्यादा जवाब नहीं दे पाईं केवल ये कह सकींदुखी कुंती ने तब गांधारी से कहा कि कर्ण को त्यागना उसका सबसे बड़ा दुख और कठिन फैसला था, जो उसने समाज के भय और अपनी अविवाहित स्थिति के कारण लिया. कुंती ने यह भी स्वीकार किया कि वह अपने इस निर्णय के लिए हमेशा पश्चाताप करती रही. ये भी कहा कि भाग्य और कर्म का खेल ऐसा था कि शायद यह सब टाला नहीं जा सकता था.कुंती ने गांधारी के दुख को समझते हुए सहानुभूति दिखाई, लेकिन ये भी कहा, उसने जो किया, वह उस समय की परिस्थितियों में उसके लिए जरूरी था. ये पूरा संवाद महाभारत के “स्त्री पर्व” में है, जहां दोनों माताएं अपने-अपने दुख और फैसलों के बारे में बात करती हैं.कई मौकों पर दिखा गांधारी-कुंती का तनावहालांकि महाभारत में गांधारी और कुंती के बीच तनाव कई अवसरों पर इसके अलावा भी देखने को मिलता है. द्रौपदी के स्वयंवर के बाद जब पांडव द्रौपदी को लेकर हस्तिनापुर लौटते हैं, तो गांधारी के मन में पुत्र दुर्योधन की हार और कुंती के पुत्रों की जीत को लेकर एक क्षुब्ध होने का भाव जरूर था. “आदि पर्व” और “सभापर्व” के संदर्भ इसे जाहिर करने के लिए काफी हैं.जब द्रौपदी का चीरहरण होता है और पांडवों को वनवास पर जाना पड़ता है तब भी दोनों स्त्रियों के बीच तनाव था. कुंती इन सबसे बहुत नाराज थीं. वह बेटों के साथ वनवास तो नहीं गईं लेकिन उन्होंने गांधारी के साथ महल में रहने से भी इनकार कर दिया. इसकी जगह वह विदुर के साथ उनके घर पर रहीं. पांडव 14 साल वनवास में रहे. उसमें कभी कभार ही गांधारी और कुंती का मिलना होता था.अंदर ही अंदर तनाव हमेशा– मातृत्व और पुत्र-प्रेम की प्रतिस्पर्धा को लेकर– गांधारी चाहती थीं कि दुर्योधन राजा बने, जबकि कुंती जानती थीं कि युधिष्ठिर ही धर्म के अनुसार सही उत्तराधिकारी हैं.– गांधारी अपने पुत्रों के प्रति पक्षपात रखती थीं. कुंती हमेशा चिंतित रहती थीं कि कौरव पांडवों के साथ अन्याय कर रहे हैं.– कुंती चाहती थीं कि गांधारी अपने पुत्रों को रोकें, जबकि गांधारी अपने पुत्रों के प्रति अंधी थीं.तब गांधारी ने कभी कुंती की बात नहीं मानीजब पांडवों को जुए में छलपूर्वक हराकर वनवास भेजा गया, तब कुंती हस्तिनापुर में ही रहीं. इस दौरान उन्होंने गांधारी को कई बार समझाने की कोशिश की कि दुर्योधन को अधर्म के रास्ते से रोकें, लेकिन गांधारी ने हमेशा पुत्र-धर्म निभाया और दुर्योधन को खुलकर नहीं रोका. इससे कुंती को गांधारी से असंतोष था.बाद में दोनों में हो गया अपनापाहालांकि महाभारत के युद्ध के बाद कुंती और गांधारी कुछ समय जाकर अपनापा हो गया. इसी वजह से जब धृतराष्ट्र और गांधारी वनवास के लिए जाने लगे तो वह भी उनके साथ विदुर को लेकर वन में चली गईं, जहां उनका निधन हुआ.टॉप वीडियोसभी देखेंtags :MahabharatLocation :Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar PradeshFirst Published :April 04, 2025, 15:54 ISThomeknowledgeमहाभारत युद्ध के बाद गांधारी ने कुंती को दी कौन सी उलाहना,रहस्य खुलने से धमाकाnext articleजिंदगी भर छोटे से फ्लैट में रहते रहे तैयब मेहता, 61.8 करोड़ रुपये में बिकी जिनकी पेंटिंगAuthor:सचिन श्रीवास्तवLast Updated:April 04, 2025, 14:45 ISTTayeb Mehta: तैयब मेहता की पेंटिंग ‘ट्रस्ड बुल’ 61.8 करोड़ रुपये में बिकी, जो दूसरी सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग बनी. हालांकि तैयब मेहता ने जीवन भर संघर्ष किया और मुंबई में एक छोटे फ्लैट में रहे. 2007 में…और पढ़ेंFollow us on Google Newsजिंदगी भर छोटे से फ्लैट में रहे तैयब मेहता, 61.8 करोड़ में बिकी जिनकी पेंटिंगतैयब मेहता की सशक्त कल्पना हमेशा उनके निजी जीवन में निहित थी.हाइलाइट्सतैयब मेहता की पेंटिंग 61.8 करोड़ में बिकीजीवन भर छोटे फ्लैट में रहे तैयब मेहता2007 में तैयब मेहता को पद्म भूषण मिलाTayeb Mehta: भारतीय कला बाजार इस समय अपने सुनहरे दौर से गुजर रहा है. मशहूर ऑर्टिस्ट तैयब मेहता की एक कृति ‘ट्रस्ड बुल’ 61.8 करोड़ रुपये में बिकी है. तैयब मेहता की ये पेंटिंग वैश्विक स्तर पर नीलामी में बिकने वाली दूसरी सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग बन गई. अब यह अमृता शेरगिल की ‘द स्टोरी टेलर’ के बराबर है, जो 2023 में इसी कीमत पर बिकी थी. नीलाम होने वाली भारतीय कला की सबसे महंगी कृति का रिकार्ड एम.एफ. हुसैन की अनटाइटल्ड (ग्राम यात्रा) के नाम है, जो पिछले महीने न्यूयॉर्क में क्रिस्टी की नीलामी में 118 करोड़ रुपये में बिकी थी. 2 अप्रैल को मुंबई में सैफरनआर्ट की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर ये नीलामी हुई. खचाखच भरे हॉल में तैयब मेहता की बनाई बैल की ऑयल पेंटिंग ने इतनी बड़ी रकम हासिल की. सैफरनआर्ट के सीईओ और को-फाउंडर दिनेश वजीरानी ने कहा, “यह भारतीय कला नीलामी के लिए एक वैश्विक रिकॉर्ड है. यह कला बाजार की ताकत को दर्शाता है. यह और भी अधिक सार्थक हो जाता है क्योंकि यह मेहता का शताब्दी वर्ष है.”ये भी पढ़ें- Mahabharat: कौन था वो राजा जिसने श्रीकृष्ण को 18 बार हराया, कैसे 14 दिन की लड़ाई के बाद भीम ने किया उसका वधसंबंधित खबरेंतस्वीर तो बस एक बैल की थी… पर कीमत? ₹61.80 करोड़! सबको चौंका गई ये नीलामीतस्वीर तो बस एक बैल की थी… पर कीमत? ₹61.80 करोड़! सबको चौंका गई ये नीलामीविकसित भारत 2047 का मार्ग: प्रगति पर आधारित, संकल्प से प्रेरितविकसित भारत 2047 का मार्ग: प्रगति पर आधारित, संकल्प से प्रेरितट्रंप ने 26% टैरिफ से गोली-दवाओं को रखा दूर, राहत से फार्मा सेक्टर में तेजीट्रंप ने 26% टैरिफ से गोली-दवाओं को रखा दूर, राहत से फार्मा सेक्टर में तेजीTrump Tariff Video: डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का भारत पर क्या असर होगा, ग्राउंड जीरो से जानिएTrump Tariff Video: डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ का भारत पर क्या असर होगा, ग्राउंड जीरो से जानिएमुंबई में बीता अधिकांश जीवनतैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई, 1925 को गुजरात के खेड़ा जिले के कापड़वंज में हुआ था. उनका पालन-पोषण मुंबई के क्रावफोर्ड मार्केट में दाउदी बोहरा समुदाय में हुआ था. उन्होंने 1952 में मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई पूरी की. वह 1947 में मुंबई में स्थापित प्रसिद्ध प्रगतिशील कलाकार समूह के सदस्य और एक प्रशिक्षित फिल्म संपादक भी थे. वह 1959 से 1964 तक लंदन में रहे और 1968 में रॉकफेलर फंड स्कॉलरशिप पर अमेरिका गए. भारतीय कला में उनके योगदान के लिए 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. उनकी कृतियां दुनिया भर के प्रमुख संग्रहालय संग्रहों में हैं. तैयब मेहता ने अपने जीवन का अधिकांश समय मुंबई में बिताया. उन्होंने जीवन भर भारतीय कला के मानक को ऊंचा उठाने का काम किया. उनका 2009 में निधन हो गया था

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