चीन से बढ़िया भारत पर दांव, गिरते बाजार में भी इंडिया का सपोर्ट कर रहा ये शख्स, 2008 क्रैश की दी थी चेतावनी

नई दिल्ली. शेयर मार्केट में पिछले महीने जबरदस्त बिकवाली देखने को मिली. हालात इतने बुरे हुए कि लोगों ने पैनिक सेलिंग स्टार्ट कर दी. बीएसई में लिस्टेड कंपनियों के बाजार पूंजीकरण 40 लाख करोड़ रुपये घट गया. फरवरी में 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 4,000 अंक से ज्यादा टूट गया. ईटी की खबर के अनुसार, निफ्टी 50 ने अपनी शुरुआत के बाद से अब तक की सबसे लंबी गिरावट दर्ज की. इस माहौल में निवेशकों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं कि आगे क्या करना चाहिए और बाजार की स्थिति कब सुधरेगी.हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाजार में उतार-चढ़ाव आम बात है, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है. लंबी अवधि के निवेश पर फोकस करना बेहतर रहेगा और जल्दबाजी में शेयर बेचने के बजाय अच्छी कंपनियों में बने रहना समझदारी होगी. बाजार सुधार के संकेत आने में समय लग सकता है, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है.अर्थशास्त्री जिम वॉकर का मानना है- भारत चीन से बेहतर निवेश की जगह है. उन्होंने भारत की स्थिर आर्थिक नीतियों की तारीफ की और कहा कि सरकार उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए लगातार काम कर रही है. आने वाले समय में कॉर्पोरेट कंपनियों की ग्रोथ अच्छी रहने की उम्मीद है, जिससे निवेशकों को घबराने की जरूरत नहीं है. कुछ लोग इस गिरावट की तुलना 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से कर रहे हैं. लेकिन जिम वॉकर की राय इससे अलग है. उनका कहना है कि 2008 का संकट आने से पहले ही उसके संकेत दिखने लगे थे. ऐसा माना जाता है कि जिम वॉकर ने 2008 के मार्केट क्रैश से पहले ही इसकी चेतावनी दे दी थी.वॉकर ने ईटी के साथ बातचीत में कहा, “2006-07 में आर्थिक संकट के संकेत साफ दिखाई दे रहे थे, जब हमने संपत्ति क्षेत्र में अधिक निवेश के कारण बड़ी गिरावट की भविष्यवाणी की थी. लेकिन इस बार स्थिति वैसी नहीं है.” उन्होंने बताया कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से पहले जिस तरह के खतरे उभर रहे थे, वैसे संकेत अब नहीं दिख रहे हैं. इस बार न तो हाउसिंग सेक्टर में ज्यादा जोखिम है और न ही वित्तीय क्षेत्र में कोई बड़ी समस्या है, जो बैंकिंग संकट को जन्म दे सके. हालांकि, कुछ क्षेत्रों में शेयर बाजार का मूल्यांकन और एसेट प्राइस इंफ्लेशन ऊंचा हो सकता है, लेकिन यह वित्तीय स्थिरता के लिए बड़ा खतरा नहीं है. उन्होंने कहा, “हम 2008 जैसी कॉरपोरेट विफलताएं नहीं देख रहे हैं, जिससे बैंकों पर दबाव पड़े. ऐसी कोई आशंका नजर नहीं आ रही है.”

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