सौराष्ट्र का अमरेली इलाका भले ही आज विकास की रफ्तार से आगे बढ़ रहा हो, लेकिन यहां के कुछ गांवों में आज भी परंपराओं की सांसें चल रही हैं. एक समय था जब हर गांव में बैलगाड़ी की खटर-पटर आम बात थी. आज भले ही सड़कों पर ट्रैक्टर और गाड़ियों की गूंज हो, लेकिन अमरेली के धारी गांव जैसे कुछ इलाकों में बैलगाड़ी आज भी दिखाई देती है.मंगलभाई का फार्महाउस बना बैलगाड़ी का म्यूज़ियमधारी गांव के रहने वाले मंगलभाई वाला अपने फार्महाउस में 80 साल पुरानी बैलगाड़ी को सहेज कर रखे हुए हैं. उनके अनुसार यह बैलगाड़ी उनके पूर्वजों के समय की है. इसके पहिए पूरी तरह लकड़ी के हैं और उस पर लोहे का गोल रिम चढ़ाया गया है, ताकि पहियों को मजबूती मिले. मंगलभाई इसे न सिर्फ एक वस्तु के रूप में, बल्कि एक विरासत के रूप में देखते हैं.जब बैलगाड़ी थी हर माल की सवारीएक जमाना था जब गांवों में सामान ढोने से लेकर यात्राओं तक के लिए बैलगाड़ी ही एकमात्र साधन हुआ करती थी. चाहे गन्ना खेत से मिल तक पहुंचाना हो या फिर चारे को खेतों से घर तक लाना हो, हर काम में बैलगाड़ी की जरूरत होती थी. यह गाड़ी दो तरह की होती थी—एक खुली, जिसमें गन्ना जैसे लंबे सामान ढोए जाते थे, और दूसरी, किनारों से घिरी हुई, जिसमें चारा और अन्य सामग्री लाई जाती थी.