जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राजनीति को बड़ा झटका देते हुए तीन प्रमुख संगठनों ने 8 अप्रैल को ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस से नाता तोड़ लिया. जम्मू कश्मीर इस्लामिक पॉलिटिकल पार्टी, जम्मू कश्मीर मुस्लिम डेमोक्रेटिक लीग और कश्मीर फ्रीडम फ्रंट जैसे तीन संगठनों ने खुद को हुर्रियत से अलग कर लिया है. एक जमाने में हुर्रियत को कश्मीर में बहुत मजबूत अलगाववादी गठजोड़ माना जाता था लेकिन अब ये कमजोर पड़ रहा है.अब तक 11 दलों ने खुद को हुर्रियत से अलग कर लिया है. संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई है. भारत के गृह मंत्री अमित शाह पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के दौरे पर भी थे.सवाल – हुर्रियत संगठन से दलों के अलग होने को किस तरह देखा जा सकता है?– हुर्रियत संगठन में शामिल पार्टियों के उससे अलग होना ये बताता है कि जम्मू-कश्मीर में चीजें बदल रही हैं. अलगाववाद कमजोर पड़ रहा है. लोग कट्टरपंथ की जगह लोकतंत्र, संविधान और मुख्यधारा की ओर झुकाव दिखाने लगे हैं. इसे कश्मीर के भीतर भारतीय संविधान को लेकर बढ़ते भरोसे के एक मजबूत संकेत के तौर पर देखा जा सकता है.सवाल – किन नेताओं ने खुद को हुर्रियत से खुद को अलग कर लिया?– तीन सीनियर कश्मीरी अलगाववादी नेता मोहम्मद यूसुफ नकाश, हकीम अब्दुल रशीद और बशीर अहमद अंद्राबी ने सार्वजनिक रूप से अलगाववाद को छोड़ दिया. उन्होंने ये घोषणा करते हुए हुर्रियत कांफ्रेंस के विभिन्न धड़ों से खुद को अलग कर लिया. ये तीनों नेता मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले हुर्रियत से संबंधित थे.सवाल – क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि कश्मीर में हालात बदल रहे हैं?– हुर्रियत से जिस तरह छोटे मोटे घटक दल हो रहे हैं और कई अलगाववादी दलों के नेता उससे मुंह मोड़ रहे हैं, उससे लगता है कि कश्मीर हालात बदल रहे हैं. करीब सभी ने एक जैसे बयानों में भारत के संविधान के प्रति अपनी निष्ठा जताई. अलगाववादी एजेंडे से खुद को पूरी तरह अलग कर लिया. दरअसल यह कदम भारत के संविधान में लोगों का विश्वास दिखाता है.सवाल – अब हुर्रियत में कितने दल बचे हैं?– जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद से केन्द्र सरकार ने आतंकवाद और अलगाववादी संगठनों के खिलाफ जिस तरह से कार्रवाई की है, उससे इनके हौसले काफी हद तक टूट चुके हैं. इसी का नतीजा है कि एक समय में ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेस में 25 से ज्यादा संगठन हुआ करते थे, जिनकी कभी कश्मीर में तूती बोलती थी. हालांकि अब गिनती के कुछ संगठन ही हुर्रियत में बचे हैं, जिनका प्रभाव अब खत्म होने के कगार पर है.सवाल – हुर्रियत कॉन्फ्रेंस क्या है?– ऑल पार्टीज़ हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (APHC) एक राजनीतिक, सामाजिक, और धार्मिक संगठनों का गठबंधन है, जो 9 मार्च 1993 को कश्मीर के स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन देने के लिए बनाया गया था. ये सभी जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते थे. इसमें जमात-ए-इस्लामी, अवामी एक्शन कमेटी, पीपुल्स लीग, इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन, मुस्लिम कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) जैसे प्रमुख दल शामिल थे.सवाल – हुर्रियत क्यों अब कमजोर पड़ रहा है?हाल के वर्षों में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस कई कारणों से कमजोर हो गया है. इसमें समय-समय पर विभाजन हुआ. 2003 में संगठन दो गुटों में बंट गया—एक कट्टरपंथी गुट (सैयद अली शाह गिलानी के नेतृत्व में) और दूसरा उदारवादी गुट (मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व में). इसके बाद भी कई दलों ने संगठन से अलग होकर अपनी राह चुनी.अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने अलगाववादी नेताओं और संगठनों पर सख्त कार्रवाई की. कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया, उनकी संपत्तियां जब्त की गईं. टेरर फंडिंग के मामलों में जांच तेज हुई. इससे हुर्रियत की गतिविधियां करीब ठप हो गईं.अब तक हुर्रियत से जुड़े कुल 11 दलों ने इससे नाता तोड़ लिया. इनमें जम्मू-कश्मीर इस्लामिक पॉलिटिकल पार्टी, मुस्लिम डेमोक्रेटिक लीग, और कश्मीर फ्रीडम फ्रंट जैसे प्रमुख संगठन शामिल हैं. इन संगठनों ने भारतीय संविधान में आस्था जताई है. पत्थरबाजी जैसी घटनाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं और कश्मीर में शांति का माहौल बन रहा है.सवाल – पहले इसमें कितने दल थे?– हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की स्थापना के समय इसमें कुल 26 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठन शामिल थे. इसके कार्यकारी परिषद में सात प्रमुख दल थे.जमात-ए-इस्लामी (सैयद अली शाह गिलानी)अवामी एक्शन कमेटी (मीरवाइज उमर फारूक)पीपुल्स लीग (शेख अब्दुल अजीज)इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (मौलवी मोहम्मद अब्बास अंसारी)मुस्लिम कॉन्फ्रेंस (प्रोफेसर अब्दुल गनी भट)JKLF (यासीन मलिक)पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (अब्दुल गनी लोन).अब ये संगठन अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है.सवाल – जनता के बीच हुर्रियत की पकड़ कैसी रही है, अब कैसी है?– हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की पकड़ कश्मीरी जनता के बीच पहले काफी मजबूत थी, लेकिन हाल के वर्षों में यह काफी कमजोर हो गई है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस में आंतरिक विभाजन और नेताओं के बीच विश्वास की कमी ने इसकी विश्वसनीयता को कम कर दिया है. हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की राजनीतिक गतिविधियां लगभग बंद हो चुकी हैं. इसके नेताओं ने राजनीति से दूरी बना ली है. कोई बड़ा बयान या रैली नहीं हो रही है. इन सभी कारणों से हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की पकड़ कश्मीरी जनता के बीच काफी कम हो गई है.