महाभारत का युद्ध खत्म हो चुका था. गांधारी अपने सभी 100 पुत्रों को खो चुकी थीं. उनका क्रोध आसमान छू रहा था. वो तो पांडवों को भी श्राप देना चाहती थीं लेकिन महर्षि व्यास ने वहां पहुंचकर पांडवों को बचा लिया. हालांकि तब वह कुंती पर गुस्सा जरूर हुईं जब उन्होंने एक ऐसा राज उन्हें बताया, जो लंबे समय से उन्होंने छिपाकर रखा था. गांधारी ने नाराजगी में कुंती को ऐसा उलाहना दिया कि उनके पास कोई जवाब नहीं था. वो चुपचाप सुन ही सकती थीं. हालांकि कुंती की इस राज को जब युधिष्ठिर ने जाना तो वह बुरी तरह नाराज ही हो गए थे.आइए जानते हैं कि गांधारी ने महाभारत के बाद कुंती को क्या उलाहना दी थी. ये उन्हें क्यों दी गई थी. इस पर कुंती की प्रतिक्रिया क्या थी. दरअसल कुंती हमेशा से जानती थीं कि कर्ण उन्हीं का बेटा है. हालांकि कर्ण को जन्म देते ही उन्होंने उसका इसलिए त्याग कर दिया था, क्योंकि तब वह कुंवारी थीं.दुर्वासा ऋषि ने क्या आशीर्वाद दियाकुंती को विवाह से पूर्व ऋषि दुर्वासा ने आशीर्वाद दिया था, जिसके कारण कर्ण का जन्म हुआ. कथा के अनुसार, जब कुंती अपने दत्तक पिता कुंतिभोज के घर पर थीं, तो ऋषि दुर्वासा ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक मंत्र दिया था. इस मंत्र की शक्ति से वह किसी भी देवता का आह्वान करके अपने पास बुला सकती थीं. उनसे पुत्र प्राप्त कर सकती थीं. कौतूहलवश कुंती ने विवाह से पहले ही इस मंत्र का प्रयोग सूर्य देव का आह्वान करने के लिए किया, जिसके परिणामस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ.लोकलाज के डर से उन्होंने कर्ण को एक टोकरी में रखकर नदी में बहाया, जो अधिरथ सूत को मिली और उन्होंने कर्ण को बेटा समझकर पालापोसा. हालांकि कर्ण में हमेशा से एक खास किस्म की वीरता और तेज रहा.कुंती ने ये रहस्य युद्ध के बाद बतायादरअसल इसका रहस्योदघाटन भी महाभारत के युद्ध के तुरंत बाद भी उन्होंने नहीं किया बल्कि तब किया जबकि महाभारत के मृतकों का तर्पण उनके परिजन कर रहे थे. तभी सहसा शोकाकुल होकर कुंती अपने पुत्रों से बोलीं, अर्जुन ने जिनका वध किया है, तुम जिन्हें सूतपुत्र और राधा का गर्भजात समझते रहे, उस महाधनुर्धर वीरलक्षणों वाले कर्ण के लिए भी तुम लोग तर्पण करो. वो तुम्हारे बड़े भाई थे. सूर्य के औरस से मेरे गर्भ में कवच कुंडलधारी होकर वह जन्मे थे.तब युधिष्ठिर भी बहुत नाराज हुएये सुनते ही पांडव पहले स्तब्ध रह गए फिर बहुत दुखी हुए. उन्होंने कहा हमें सौ गुना ज्यादा दुख हो रहा है. उस समय तो युधिष्ठिर ने कर्ण की पत्नियों के साथ मिलकर तर्पण कर दिया लेकिन बाद में अपनी मां से बहुत नाराज हुए. पहली बार अपनी मां को श्राप भी दिया.उन्होंने अपनी माँ कुंती को उलाहना दिया कि “यदि तुमने यह बात पहले ही बता दी होती, तो हम कर्ण को सम्मान देते और यह युद्ध कभी होता ही नहीं!” भीम ने भी यह महसूस किया कि कर्ण को दुर्योधन के पक्ष में खड़ा करने की बड़ी गलती कुंती की ही थी. अर्जुन इस सच्चाई से अंदर तक हिल गए। उन्होंने कहा, “यदि मुझे पहले ही पता होता कि कर्ण मेरा भाई है, तो मैं उसके खिलाफ हथियार नहीं उठाता.” अर्जुन को इस बात का भारी दुःख हुआ कि उन्होंने अपने ही भाई को मार डाला.