Sikh Woman Warrior Mai Bhago: पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी के नाम से तो हर कोई वाकिफ है. मगर बहादुरी में हमारे देश की वीरांगनाएं भी पीछे नहीं रही हैं. इनमें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, कित्तूर की रानी चेनम्मा और रानी वेलु नचियार की बहादुरी के किस्से तो इतिहास के स्वर्णिम अध्याय का हिस्सा हैं. लेकिन ये हकीकत है कि सिख वीरांगना माई भागो या भाग माता कौर के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. इनकी बहादुरी के सामने मुगलों को भी अपनी जान बचाकर भागना पड़ा था. उनकी वीरता और साहस से गुरु गोबिंद सिंह जी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उन्हें अपना अंगरक्षक नियुक्त किया था. माई भागो की वीरता और बलिदान की कहानी आज भी लोगों को प्रेरित करती है. वह सिख इतिहास में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं. कौन थीं सिख योद्धा माई भागोइतिहासकारों के मुताबिक सिख वीरांगना माई भागो का जन्म झाबल कलां (अब अमृतसर) में हुआ था और वो भाई मल्लो शाह नामक जमींदार की इकलौती बेटी थीं. माई भागो की दो पीढ़ियों ने गुरुओं की सेवा की थी. माई भागो ने बचपन में गुरु अर्जन देव की शहादत और गुरु हर गोबिंद पर मुगल सेना के हमलों की कहानियां सुनी थीं. उनके परिवार में अक्सर गुरुओं और सिखों पर हमलों की बातचीत होती थी, जिसका असर माई भागो के दिमाग पर पड़ रहा था. एक लेख के मुताबिक, माई भागो साल 1699 के बाद मार्शल आर्ट सीखने और सैनिक बनने के लिए आनंदपुर साहिब में रहना चाहती थीं, लेकिन उनके पिता ने इसकी इजाजत नहीं दी. हालांकि, उन्होंने गुरु गोविंंद सिंह जी की सेना में शामिल होने के लिए अपने पिता से युद्ध कला और घुड़सवारी में ट्रेनिंग ली. ब्रिटेन की सिख मिशनरी सोसायटी की एक रिपोर्ट कहती है कि माई भागों ने हथियार के तौर पर भाले का चुनाव किया. वह गांव के नजदीकी जंगल में भाले से पेड़ों को छेदने का अभ्यास करती थीं. मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब को घेरामाई भागो ने सिखों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाना अपना कर्तव्य मान लिया. जब वह बड़ी हुईं तो उनकी सोच मजबूत हुई. इसी दौरान मुगलों की सेना ने आनंदपुर साहिब की घेराबंदी की. वो मुगल शासक औरंगजेब का दौर था. औरंगजेब ने 1704 में गुरु गोबिंद सिंह को पकड़ने के लिए 10 लाख सैनिकों की विशाल सेना आनंदपुर भेजी. पंजाब के मुक्तसर साहिब शहर की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, मुगल सेना ने आनंदपुर साहिब को आठ महीने तक घेरकर रखा. आनंदपुर में खाने-पीने की किल्लत होनी शुरू हो गई. ऐसे हालात में भी 10 हजार सिख योद्धा गुरु गोबिंद सिंह के साथ खड़े रहे. मुगलों ने दिया गुरु गोबिंद सिंह को धोखामुगलों की 10 लाख सैनिकों की सेना तमाम कोशिशों के बाद भी गुरु गोबिंद सिंह के 10 हजार सिख सैनिकों को झुका नहीं पायी. ब्रिटेन की सिख मिशनरी सोसायटी की रिपोर्ट के मुताबिक, आखिर में मुगल सेना ने साथ गुरु गोबिंद सिंह से समझौता किया कि अगर वह आनंदपुर साहिब छोड़ दें तो उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा. लेकिन, गुरु गोबिंद सिंह के किले से बाहर आते ही मुगल सेनापतियों ने वादा तोड़ दिया और उन पर हमला कर दिया. गुरु गोबिंद सिंह को सिरसा नदी पार करते समय चमकौर में मुगल सेना से युद्ध लड़ना पड़ा. इसमें उनके दो बड़े बेटे शहीद हो गए. वहीं, काफी सिख योद्धा भी इस जंग में हताहत हो गए. माई भागो ने इकट्ठा किए 40 योद्धाइधर जब माई भागो को पता चला कि गुरु गोबिंद सिंह आनंदपुर साहिब से निकलकर मालवा की तरफ आ रहे हैं तो उन्होंने गुरु को छोड़कर आए 40 सिख योद्धाओं को फिर से इकट्ठा किया. उन्होंने उन योद्धाओं से कहा कि गुरु गोबिंद सिंह ने हमारी रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार का बलिदान कर दिया. क्या हम खुद लड़कर अपनी और अपनों की रक्षा नहीं कर सकते. उनका जोशीले भाषण सुनकर 40 सिख योद्धा मुगलों से लोहा लेने के लिए तैयार हो गए. माई भाग ने मौजूदा मुक्तसर झील पर मुगलों की सेना को रोकने की योजना बनाई. जब गुरु गोबिंद सिंह का पीछे करते हुए मुगलों की सेना इस झील पर पहुंची, तब माई भागो 40 सिख योद्धाओं के साथ झील के चारों ओर तैयार बैठी थीं. माई भागो ने विशाल सेना को चटाई धूलमुक्तसर झील पर 29 दिसंबर 1705 को भयंकर युद्ध हुआ. माई भागो ने 40 योद्धाओं के साथ मुगलों के 10,000 सैनिकों का खूब मुकाबला किया. माई भागो ने बिजली की रफ्तार से दुश्मनों को भेदते हुए भाले के साथ 40 सिख योद्धाओं का नेतृत्व किया. टीले से गुरु गोबिंद सिंह भी उनकी मदद करते रहे. मुगल सेना माई भागो के इस हमले के सामने टिक नहीं पाई. आखिर में मुगल सेना पीछे हटती चली गई. इतिहासकारों के मुताबिक, मुगल सेना अपने घायल सैनिकों को लावारिस छोड़कर भाग खड़ी हुई. हालांकि, इस जंग में माई भागो और 40 योद्धाओं में से सिर्फ महान सिंह ही जीवित बचे.