दारा शिकोह शाहजहां का ऐसा बेटा था, जिसे वह अगला बादशाह बनाना चाहता था

दारा शिकोह शाहजहां का ऐसा बेटा था, जिसे वह अगला बादशाह बनाना चाहता था. दारा का भाई औरंगजेब किसी भी हालत में उसे गद्दी पर बैठे नहीं देखना चाहता था. हिंदुओं के बीच भी दारा पसंद किया जाता था. हिंदू धर्मग्रंथों में उसकी दिलचस्पी थी. वह हिंदू धर्म गुरुओं की सोहबत में रहता था. उसका अंत औरंगजेब के हाथों बहुत खराब हुआ .

दारा शिकोह
जन्म – 20 मार्च 1615
मृत्यु – 30 अगस्त 1659

मुगल सल्तनत की बात आते ही अक्सर एक शहजादे की तारीफ हिंदू लोग भी करते हैं. वह दारा शिकोह था. बादशाह शाहजहां का पुत्र. जो हिंदू धर्मशास्त्रों का अध्ययन कर चुका था. इस धर्म से अनुराग करता था. धर्माचार्यों को बुलाकर तकरीरें करता था. उसने बड़े पैमाने पर हिंदू धर्मग्रंथों का अनुवाद कराया. उसके धर्म को लेकर इसी रुझान के चलते मुस्लिम धर्मगुरु उससे खासे नाराज रहते थे. जहां कुछ लोग उसे पंडितजी कहने लगे थे तो कुछ काफिर

वह जनता के बीच अपनी रहमदिली की वजह से लोकप्रिय था. बादशाह शाहजहां चाहता था कि उसका उत्तराधिकारी वही हो लेकिन औरंगजेब ने युद्ध में उसे हराकर खून की नदियां बहाते हुए सत्ता हड़प ली.  लेकिन इतिहास ने दारा को हमेशा एक खास जगह दी और सम्मान से याद किया.

दारा शिकोह ने सभी धर्मों के ज्ञानीजनों को इकट्ठा किया था. हिंदू धर्म के गहरे अध्ययन के बाद दारा शिकोह खुद यह मानने लगा था कि कुछ छोटे-मोटे अंतर छोड़कर हिंदू-मुस्लिम धर्म में कोई फर्क नहीं है. दारा शिकोह विद्वान था. वो भारतीय उपनिषद और भारतीय दर्शन की अच्छी जानकारी रखता था.

औरंगजेब को लगता था दारा सफल हुआ तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा
इतिहासकार बताते हैं कि वो विनम्र और उदार ह्दय का था. कहा जाता है कि दारा शिकोह के पिता ने समझ लिया था कि उसके बेटे ने हिंदुस्तान को जान लिया है और वो शासन चलाने के लिए बेहतर साबित होगा लेकिन औरंगजेब ने बवाल खड़ा किया. औरंगजेब को लगा कि अगर दारा शिकोह सफल रहता है तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा.

वह चाहता था हिंदू-मुस्लिम एक हो जाएं
दारा इस बात को लेकर भी आश्चर्यचकित होता था कि सभी धर्मों के विद्वान अपनी व्याख्याओं में उलझे रहते हैं और ये कभी समझ नहीं पाते कि इन सभी का मूल तत्व तो एक ही है. उसका मानना था कि एक ज्ञान के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि उस व्यक्ति को सत्य की तलाश होनी चाहिए. उसने हिंदू और मुस्लिम धर्मों के एक साथ होने को मजमा उल बहरीन(दो समुद्रो का मिलना) नाम दिया था.

जितने भारतीय उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया गया, उस सबमें दारा शिकोह की भूमिका खासी महत्वपूर्ण थी. उसने इस काम के लिए बड़े पैमाने पर विद्वानों की नियुक्ति की थी, जो ये काम किया करते थे.

 दारा का सबसे बड़ा योगदान
दारा के सबसे बड़े योगदानों में उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करना माना जाता है. इन अनुवादित किताबों को उसने ‘सिर ए अकबर’ यानी महान रहस्य का नाम दिया था. फारसी भाषा में अनुवाद कराए जाने का मुख्य कारण ये था कि फारसी मुगलिया कोर्ट में इस्तेमाल की जाती थी. हिंदुओं का भी विद्वान वर्ग इस भाषा के साथ बखूबी परिचित था.

भारत में हिन्दू-झुकाव वाले इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर औरंगज़ेब की जगह दारा शिकोह मुग़लिया सल्तनत के तख़्त पर बैठते तो देश की स्थिति बिल्कुल अलग होती.

dara shikoh

दारा शिकोह धर्माचार्यों के साथ चर्चा करता हुआ (courtesy indian culture)

 सूफी रहस्यवाद में दिलचस्पी
दारा शिकोह का जन्म ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की भूमि अजमेर में हुआ, जिनसे उनके पिता शाहजहाँ ने एक बेटे के लिए प्रार्थना की थी. 06 पुत्रों में सबसे बड़े पुत्र दारा को मुग़ल साम्राज्य के भावी शासक के रूप में तैयार किया गया. उसके भाइयों को प्रशासक के रूप में सुदूर प्रांतों में नियुक्त किया गया लेकिन वह हमेशा शाही दरबार में पिता के साथ ही रहा. बहुत छोटी उम्र में ही उसने सूफी रहस्यवाद और कुरान में गहरी रुचि और दक्षता विकसित कर ली.

आचार विचार में मुगल शहजादों में सबसे अलग
दारा शिकोह को मुगलिया सल्तनत में लोग पंडित जी कहा करते थे. वो आचार-विचार में मुगल शहजादों से अलग हटकर था. उसे संस्कृत और हिंदू धर्म ग्रंथों से प्यार था. उसकी इस प्रवृत्ति से औरंगजेब उससे बहुत चिढ़ता था. बाद में औरंगजेब ने उसकी हत्या करके मुगलिया गद्दी पर कब्जा भी किया.

युवावय में अपने भाइयों औरंगजेब और शुजा के साथ (courtesy indian culture)

प्रशासन और सैन्य मामलों में दिलचस्पी नहीं 
अवीक चंदा की किताब ‘दारा शुकोह, द मैन हू वुड बी किंग’ में लिखा है, अवीक का कहना था, “दारा शिकोह का एक बहुत बहुआयामी और जटिल व्यक्तित्व था. एक तरफ़ वो बहुत गर्मजोश शख़्स, विचारक, प्रतिभाशाली कवि, अध्येता, उच्च कोटि के धर्मशास्त्री, सूफ़ी और ललित कलाओं का ज्ञान रखने वाले शहज़ादे थे, लेकिन दूसरी तरफ़ प्रशासन और सैन्य मामलों में उनकी कोई रुचि नहीं थी. वह स्वभाव से वहमी था. लोगों को पहचानने की उनकी समझ संकुचित थी.”

दारा की शादी सबसे महंगी थी
दारा शिकोह की शादी को मुग़ल इतिहास की सबसे मंहगी शादी कहा जाता है. उस समय इंग्लैंड से भारत भ्रमण पर आए पीटर मैंडी ने लिखा कि उस शादी में उस ज़माने में 32 लाख रुपये ख़र्च हुए थे जिसमें से 16 लाख रुपये दारा की बड़ी बहन जहाँआरा बेगम ने दिए थे.

ये शादी 1 फ़रवरी 1633 को हुई थी. 8 फ़रवरी तक दावतों का सिलसिला जारी रहा. इस दौरान रात में इतने पटाख़े छोड़े गए कि लगा कि रात में दिन हो गया हो. कहा जाता है कि शादी के दिन पहने गए दुल्हन के जोड़े की ही क़ीमत आठ लाख रुपए थी.

dara shikoh

दारा शिकोह को उसका कट्टर धार्मिक भाई औरंगजेब काफिर समझता था. उसे लगता था कि दारा गद्दी पर बैठ गया तो इस्लाम खतरे में पड़ जाएगा. (courtesy indian culture)

दिल्ली में जंजीरों में बांधकर घुमाया गया
हालांकि दारा का अंतिम समय बहुत खराब था. वह 1658 में सामूगढ़ की लड़ाई में हार गए. पराजित शहज़ादे ने अफग़ानिस्तान के दादर में शरण मांगी,मेज़बान ने उनके भाई औरंगज़ेब को सूचना दे कर उन्हें धोखा दे दिया. उन्हें चिथड़ों में दिल्ली लाया गया. फिर ज़ंजीरों से बांध कर और कलंकित करके शाही राजधानी की गलियों में एक मादा हाथी के ऊपर बिठा कर घुमाया गया.

इस तरह औरंगजेब ने किया बेइज्जत
दारा के इस सार्वजनिक अपमान का बहुत ही लोमहर्षक वर्णन फ़्रेंच इतिहासकार फ़्रांसुआ बर्नियर ने अपनी किताब ‘ट्रेवल्स इन द मुग़ल इंडिया’ में किया. बर्नियर लिखते हैं, “दारा को एक छोटी हथिनी की पीठ पर बिना ढ़के हुए हौदे पर बैठाया गया. उनके पीछे एक दूसरे हाथी पर उनका 14 साल का बेटा सिफ़िर शिकोह सवार था. उनके ठीक पीछे नंगी तलवार लिए औरंगज़ेब का गुलाम नज़रबेग चल रहा था. उसको आदेश थे कि अगर दारा भागने की कोशिश करें या उन्हें बचाने की कोशिश हो तो तुरंत उनका सिर धड़ से अलग कर दिया जाए.

दुनिया के सबसे अमीर राज परिवार का वारिस फटे- हाल कपड़ों में अपनी ही जनता के सामने बेइज़्ज़त हो रहा था. उसके सिर पर एक बदरंग साफ़ा बंधा हुआ था और उसकी गर्दन में न तो कोई आभूषण थे और न ही कोई जवाहरात.”

पैरों में जंजीरें और झुकी हुई नजरें
बर्नियर आगे लिखते हैं, “दारा के पैर ज़ंजीरों में बंधे हुए थे, लेकिन उनके हाथ आज़ाद थे. अगस्त की चिलचिलाती धूप में उसे इस वेष में दिल्ली की उन सड़कों पर घुमाया गया जहाँ कभी उसकी तूती बोला करती थी. इस दौरान उसने एक क्षण के लिए भी अपनी आंखें ऊपर नहीं उठाईं. उसकी इस हालत को देख कर दोनों तरफ़ खड़े लोगों की आंखें भर आईं.”

औरंगजेब ने वह दारा का कटा सिर देखना चाहता है
उसी के एक दिन बाद औरंगज़ेब के दरबार में ये तय किया गया कि दारा शिकोह को मौत के घाट उतार दिया जाए. उन पर इस्लाम का विरोध करने का आरोप लगाया गया. औरंगज़ेब ने 4000 घुड़सवारों को दिल्ली से बाहर जाने का आदेश दिया और जानबूझ कर इस तरह की अफवाहें फैलाई गईं कि दारा को ग्वालियर की जेल में ले जाया जा रहा है. उसी शाम औरंगज़ेब ने नज़र बेग को बुला कर कहा कि वो दारा शिकोह का कटा हुआ सिर देखना चाहते हैं.

कटा सिर औरंगजेब के सामने पेश किया गया
नज़र बेग अपनी तलवार से दारा का सिर धड़ से अलग कर देता है.दारा शिकोह के कटे हुए सिर को औरंगज़ेब के सामने पेश किया जाता है. उस समय वो अपने किले के बगीचे में बैठा होता है. सिर देखने के बाद औरंगज़ेब हुक्म देता हैं कि सिर में लगे ख़ून को धो कर उनके सामने पेश किया जाए. फिर कटे धड़ को दिल्ली के रास्तों पर घुमाया जाता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!