Explainer: क्या सुप्रीम कोर्ट केंद्र के बनाए किसी कानून को रद्द कर सकता है, क्या पहले भी हो चुका है ऐसा?

Waqf Amendment Bill: द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिलते ही पांच अप्रैल को वक्फ बोर्ड संशोधन बिल ने कानून का रूप ले लिया. वक्फ संशोधन बिल तीन अप्रैल को लोकसभा में 288-232 वोटों के अंतर से पारित हुआ था. अगले दिन यानी चार अप्रैल को राज्यसभा ने भी इस बिल पर 128-95 से मुहर लगा दी थी. इसी दिन इस कानून को रद किए जाने की मांग को लेकर एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी और किशनगंज (बिहार) से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य मोहम्मद जावेद सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गए. इस मामले में केवल ये दो नहीं बल्कि 72 याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं. इन याचिकाओं में नए वक्फ कानून को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई है और इसे रद करने की मांग की गई है. अब सवाल ये है कि क्या केंद्र द्व्रारा बनाए गए इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है और क्या वो इसे रद कर सकता है? क्या सुप्रीम कोर्ट के पास इतनी ताकत होती है कि वो संसद के दोनों सदनों से पास किए गए और राष्ट्रपति की मंजूरी से बने किसी कानून को पलट दे? तो इसका जवाब है हां. भारत में सुप्रीम कोर्ट न्याय की आस रखने वालों के लिए सबसे बड़ी अदालत है. इसीलिए इसे सुप्रीम कोर्ट या सर्वोच्च न्यायलय कहा जाता है. सुप्रीम कोर्ट के ऊपर भारत के संविधान को तोड़ने मरोड़ने से बचाने की जिम्मेदारी है. सुप्रीम कोर्ट रद कर सकता है कानूनइसका मतलब है कि नए वक्फ संशोधन कानून में भी सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि देश के संविधान में जो प्रावधान हैं उसका कहीं भी किसी भी सूरत में उल्लंघन ना हो. इस अर्थ यह है कि सुप्रीम कोर्ट के पास अधिकार है कि वह किसी भी कानून को असंवैधानिक घोषित करके उसे रद कर सकता है. हालांकि इसके लिए कुछ नियम और एक प्रक्रिया होती है. इस प्रक्रिया के तहत सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को रद कर सकता है. लेकिन इसके लिए याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के सामने यह साबित करना होगा कि इस कानून को बनाकर संविधान की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ की गई है. ऐसे में ना केवल सुप्रीम कोर्ट दखल करेगा बल्कि कानून रद भी कर देगा.वक्फ कानून को किस आधार पर दी चुनौतीवक्फ संशोधन कानून संविधान के अनुच्छेद 25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है. इस अनुच्छेद के तहत भारत के हर व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा के मुताबिक धर्म को मानने, अपनी परंपराओं का पालन करने, और उसका प्रचार करने का अधिकार है. साथ ही किसी भी धार्मिक प्रथा से जुड़ी किसी भी वित्तीय, आर्थिक, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियंत्रित और प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता. ये अनुच्छेद अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संपत्ति और संस्थानों का प्रबंध करने का अधिकार देता है. ऐसे में अगर वक्फ संपत्तियों का प्रबंध बदलता है या इसमें गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जाता है तो यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है. याचिकाकर्ताओं का ये भी मानना है कि ये कानून अनुच्छेद 26 का भी उल्लंघन करता है. यह अनुच्छेद धार्मिक समुदाय को अपने धार्मिक संगठनों के रखरखाव का अधिकार देता है, लेकिन नया कानून धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार छीनता है. अल्पसंख्यक के अधिकारों को छीनना अनुच्छेद 29 और 30 का उल्लंघन है.10 सालों में 10 से ज्यादा कानूनों को चुनौतीऐसा नहीं है कि विपक्ष पहली बार केंद्र सरकार के किसी फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा हो. इसके पहले कई मामलों में अदालत का दरवाजा खटखटाया गया. पिछले दस सालों में मोदी सरकार के दस से ज्यादा कानूनों की वैधता को चुनौती दी गई है. पिछले एक दशक में ये चुनौतियां संवैधानिक वैधता, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन या विधायी अधिकार क्षेत्र में अधिक हस्तक्षेप के आधार पर दी गई हैं. सुप्रीम कोर्ट अक्सर इस संतुलन का रक्षक बना है. आइए आपको बताते हैं कि केंद्र के वो कौन से चार कानून सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और उन पर क्या फैसला आया…

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