खुद NSE के सीईओ ने दी जिससे दूर रहने की सलाह, क्या होती है वह डेरिवेटिव ट्रेडिंग?

नई दिल्ली. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के सीईओ और मैनेजिंग डायरेक्टर आशीष चौहान ने खुदरा (रिटेल) निवेशकों को डेरिवेटिव ट्रेडिंग से दूर रहने की सलाह दी है. उन्होंने कहा कि यह ट्रेडिंग काफी जटिल होती है और इसे समझे बिना इसमें पैसा लगाना नुकसानदायक हो सकता है. बिजनेस टुडे माइंडरश 2025 इवेंट में बोलते हुए चौहान ने कहा, “अगर आप किसी वित्तीय साधन (instrument) को नहीं समझते हैं, तो उसमें निवेश न करें. खासतौर पर खुदरा निवेशकों के लिए डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग सही जगह नहीं है.”इसके साथ ही उन्होंने बाजार से जुड़े टिप्स और सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं पर भरोसा न करने की भी सलाह दी. उन्होंने कहा, “पॉप सर्किट, मैसेज या वॉट्सऐप ग्रुप में आने वाली बातों को मनोरंजन समझें, निवेश की सलाह नहीं.” दरअसल, हाल ही में एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि खुदरा निवेशकों को फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) ट्रेडिंग में लगातार नुकसान हो रहा है. इस नुकसान को कम करने और निवेशकों को सुरक्षित रखने के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कई नए नियम लागू किए हैं. चौहान का यह बयान उन निवेशकों के लिए एक चेतावनी की तरह है जो जल्द मुनाफा कमाने के चक्कर में बिना समझे डेरिवेटिव्स में पैसा लगाते हैं. विशेषज्ञ भी मानते हैं कि हाई-रिस्क ट्रेडिंग की बजाय बाजार में लंबी अवधि के लिए निवेश करना ज्यादा फायदेमंद होता है.ये भी पढ़ें- श्रीलंका का हितैषी बनने चला था चीन! भारत के एक दांव से डूब गए 60000 करोड़, अब ड्रैगन पीट रहा घाटे का ढोलक्या होती है डेरिवेटिव ट्रेडिंगडेरिवेटिव (Derivative) एक वित्तीय साधन (financial instrument) है, जिसकी कीमत किसी अन्य एसेट (जैसे स्टॉक, कमोडिटी, करेंसी, बॉन्ड या इंडेक्स) पर आधारित होती है. यानी इसका मूल्य उस एसेट के बाजार मूल्य से प्रभावित होता है. डेरिवेटिव ट्रेडिंग में निवेशक सीधे स्टॉक्स खरीदने-बेचने के बजाय उनके भाव में होने वाले उतार-चढ़ाव से मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं.डेरिवेटिव्स के प्रमुख प्रकारफ्यूचर्स (Futures) – इसमें खरीदार और विक्रेता भविष्य की किसी निश्चित तारीख पर तय कीमत पर एसेट खरीदने या बेचने का करार करते हैं.ऑप्शंस (Options) – इसमें निवेशक को किसी एसेट को भविष्य में एक निश्चित कीमत पर खरीदने या बेचने का अधिकार (लेकिन बाध्यता नहीं) मिलता है. इसमें दो तरह के ऑप्शंस होते हैं:कॉल ऑप्शन (Call Option) – किसी एसेट को भविष्य में खरीदने का अधिकार.पुट ऑप्शन (Put Option) – किसी एसेट को भविष्य में बेचने का अधिकार.डेरिवेटिव ट्रेडिंग में जोखिम क्यों ज्यादा होता है?उच्च अस्थिरता (High Volatility): चूंकि डेरिवेटिव्स की कीमतें स्टॉक्स और मार्केट सेंटिमेंट पर निर्भर करती हैं, इसलिए इनमें बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है.लीवरेज (Leverage): इसमें कम पैसे लगाकर ज्यादा एक्सपोजर मिलता है, लेकिन अगर बाजार उल्टा चलता है तो बड़ा नुकसान भी हो सकता है.समय की सीमा (Time Decay): ऑप्शंस में समय बीतने के साथ उनका मूल्य कम होता जाता है, जिससे नुकसान की संभावना बढ़ती है.डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग कौन करता है?हेजर्स (Hedgers): ये निवेशक अपने जोखिम को कम करने के लिए डेरिवेटिव्स का उपयोग करते हैं, जैसे कंपनियां करेंसी या कमोडिटी के दाम में उतार-चढ़ाव से बचने के लिए फ्यूचर्स का इस्तेमाल करती हैं.स्पेकुलेटर्स (Speculators): ये लोग भविष्य में कीमतों की दिशा का अनुमान लगाकर मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं.आर्बिट्रेजर्स (Arbitragers): ये निवेशक अलग-अलग बाजारों में कीमतों के अंतर का फायदा उठाकर मुनाफा कमाते हैं.NSE के सीईओ आशीष चौहान के मुताबिक, खुदरा निवेशकों को डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग से बचना चाहिए, क्योंकि यह बहुत जटिल होती है और इसमें नुकसान की संभावना ज्यादा रहती है. विशेषज्ञों का भी मानना है कि लॉन्ग-टर्म निवेश की तुलना में डेरिवेटिव ट्रेडिंग में ज्यादा रिस्क होता है, इसलिए बिना पूरी जानकारी के इसमें पैसा लगाना नुकसानदेह हो सकता है.

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