Explainer: नेहरू की ऐतिहासिक भूल! शास्त्री, इंदिरा से लेकर मोदी तक, हर प्रधानमंत्री ने भुगता खामियाजा

तलिमनाडु सहित दक्षिण भारत के कई राज्यों में हिन्दी बनाम क्षेत्रीय भाषा का विवाद इन दिनों खासा तूल पकड़ चुका है. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने तो केंद्र सरकार पर राज्य में हिन्दी थोपने का आरोप लगाते हुए सख्त विरोध जताया है. उन्होंने इस सिलसिले में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दिए आश्वासन की भी याद दिलाई, जिसमें कहा गया था कि ‘जब तक गैर-हिंदी भाषी लोग चाहेंगे, अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी.’ हालांकि नेहरू का यह आश्वासन उनके बाद आए तमाम प्रधानमंत्रियों यानी लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए परेशानी खड़ी करता रहा है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राज्य विधानसभा में केंद्र सरकार के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में हैं. यह प्रस्ताव केंद्र की तरफ गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने के कथित प्रयासों के खिलाफ होगा. यह कदम एक संसदीय समिति की ओ से केंद्रीय संस्थानों में हिंदी को माध्यम बनाने की सिफारिश के बाद उठाया जा रहा है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली इस समिति की सिफारिश ने दक्षिणी राज्यों में भाषा विवाद को फिर से भड़का दिया है. तमिलनाडु और केरल ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस सिफारिश को लागू न करने की वकालत की है. यह विवाद राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों से दो साल पहले यह मुद्दा उठाया गया 20

तलिमनाडु सहित दक्षिण भारत के कई राज्यों में हिन्दी बनाम क्षेत्रीय भाषा का विवाद इन दिनों खासा तूल पकड़ चुका है. तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने तो केंद्र सरकार पर राज्य में हिन्दी थोपने का आरोप लगाते हुए सख्त विरोध जताया है. उन्होंने इस सिलसिले में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दिए आश्वासन की भी याद दिलाई, जिसमें कहा गया था कि ‘जब तक गैर-हिंदी भाषी लोग चाहेंगे, अंग्रेजी आधिकारिक भाषा बनी रहेगी.’ हालांकि नेहरू का यह आश्वासन उनके बाद आए तमाम प्रधानमंत्रियों यानी लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी से लेकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के लिए परेशानी खड़ी करता रहा है.

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राज्य विधानसभा में केंद्र सरकार के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में हैं. यह प्रस्ताव केंद्र की तरफ गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने के कथित प्रयासों के खिलाफ होगा. यह कदम एक संसदीय समिति की ओ से केंद्रीय संस्थानों में हिंदी को माध्यम बनाने की सिफारिश के बाद उठाया जा रहा है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली इस समिति की सिफारिश ने दक्षिणी राज्यों में भाषा विवाद को फिर से भड़का दिया है. तमिलनाडु और केरल ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस सिफारिश को लागू न करने की वकालत की है. यह विवाद राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनावों से दो साल पहले यह मुद्दा उठाया गया है.

तमिलनाडु का हिंदी विरोधी संघर्ष
1937: तमिलनाडु में हिंदी विरोधी भावना और आंदोलन का इतिहास स्वतंत्रता पूर्व काल से जुड़ा है. 1930 के दशक के अंत में, मद्रास प्रेसीडेंसी में तब के कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को एक विषय के रूप में पेश करने का प्रयास किया, जिसका विरोध ईवी रामासामी और जस्टिस पार्टी ने किया. यह आंदोलन तीन साल तक चला, जिसमें दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई और 1,000 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया.

सरकार के भीतर हिंदी पढ़ाने के पक्ष और इसे वैकल्पिक बनाने के पक्ष में दो विचार थे. हालांकि, 1939 में, कांग्रेस सरकार ने जर्मनी के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को शामिल करने के ब्रिटेन के फैसले के विरोध में इस्तीफा दे दिया. अगले साल, ब्रिटिश सरकार ने हिंदी पढ़ाने का आदेश वापस ले लिया.

1946-1950: हिंदी विरोधी आंदोलन का दूसरा चरण 1946-1950 के दौरान आया, जब भी सरकार ने स्कूलों में हिंदी वापस लाने की कोशिश की. एक समझौते के तहत, सरकार ने हिंदी को वैकल्पिक विषय बनाने का फैसला किया और विरोध कम हो गया.

1953: वर्ष 1953 में, डीएमके ने कल्लुकुडी का नाम बदलकर डालमियापुरम (उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया के नाम पर) करने का विरोध किया, यह कहते हुए कि यह “उत्तर द्वारा दक्षिण का शोषण” दर्शाता है.

1959: तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संसद को आश्वासन दिया कि गैर-हिंदी भाषी राज्य यह तय कर सकते हैं कि अंग्रेजी कितने समय तक आधिकारिक भाषा रहेगी और हिंदी और अंग्रेजी दोनों देश की प्रशासनिक भाषा बनी रहेंगी.

1963: वर्ष 1963 में, आधिकारिक भाषा अधिनियम के पारित होने के विरोध में, अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया. डीएमके के एक सदस्य, चिन्नासामी ने त्रिची जिले में आत्मदाह कर लिया.

लोगों को इस बात का डर था कि केंद्रीय सरकारी नौकरियों के लिए हिंदी का ज्ञान प्रमुख मानदंड होगा, जिससे छात्रों में हिंदी के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ. इस डर को बढ़ाते हुए, तत्कालीन कांग्रेस मुख्यमंत्री एम भक्तवचालम ने तीन-भाषा सूत्र (अंग्रेजी, तमिल और हिंदी) पेश किया.

1965: फिर साल 1965 में तमिलनाडु में हिंदी को एकमात्र आधिकारिक भाषा बनाने के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए. सीएन अन्नादुरई ने घोषणा की कि 25 जनवरी, 1965 को ‘शोक दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.

मदुरै में, प्रदर्शनकारी छात्रों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच झड़पें हुईं, जिससे राज्य भर में दंगे और आगजनी फैल गई. ट्रेन के डिब्बों और हिंदी बोर्डों को जलाया गया और सार्वजनिक संपत्ति को लूटा गया. कांग्रेस सरकार ने इस विरोध को कानून और व्यवस्था की समस्या के रूप में देखा और इसे पुलिस बल से दबाने की कोशिश की, जिससे विरोध और भड़क गया. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 70 लोग मारे गए.

इस आंदोलन का केंद्रीय सरकार पर भी प्रभाव पड़ा, जिसके कारण प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नेतृत्व वाली सरकार में दो मंत्रियों – सी सुब्रमण्यम और ओवी अलागेसन – ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया.

शास्त्री ने इस्तीफे स्वीकार कर उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन को भेज दिया, जिन्होंने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया. राष्ट्रपति ने शास्त्री को सलाह दी कि इस मुद्दे को और न बढ़ाया जाए. बाद में, शास्त्री ने जवाहरलाल नेहरू के आश्वासन को दोहराया कि अंतर-राज्य संचार और सिविल सेवा परीक्षाओं में अंग्रेजी का उपयोग जारी रहेगा.

1967: प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1967 के आधिकारिक भाषा अधिनियम में संशोधन करके नेहरू के 1959 के आश्वासनों को और सुरक्षा प्रदान की.

डीएमके और छात्रों के नेतृत्व में किए गए इस आंदोलन के कारण 1967 में द्रविड़ पार्टी सत्ता में आई, जिससे कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया गया.

कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री के. कामराज को विरुधुनगर निर्वाचन क्षेत्र में डीएमके के एक छात्र नेता ने हरा दिया. इस चुनाव ने तमिलनाडु में कांग्रेस के शासन का अंत कर दिया.

2022 में क्यों फिर छिड़ा विवाद?
9 अक्टूबर को यह सामने आया कि एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी जैसे तकनीकी और गैर-तकनीकी उच्च शिक्षा संस्थानों में हिंदी माध्यम होना चाहिए और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा. इसने यह भी सिफारिश की कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में से एक बनाया जाना चाहिए.

सितंबर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को प्रस्तुत अपनी 11वीं रिपोर्ट में, अमित शाह की अध्यक्षता वाली आधिकारिक भाषा पर संसद की समिति ने सिफारिश की कि सभी राज्यों में स्थानीय भाषाओं को अंग्रेजी पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

समिति ने सुझाव दिया कि देश के सभी तकनीकी और गैर-तकनीकी संस्थानों में हिंदी या स्थानीय भाषा का माध्यम होना चाहिए और अंग्रेजी का उपयोग वैकल्पिक होना चाहिए.

समाचार एजेंसी पीटीआई ने समिति के उपाध्यक्ष और बीजेडी नेता भरतृहरि महताब के हवाले से कहा कि सिफारिशें नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार तैयार की गई थीं.

क्या सिफारिशें बाध्यकारी हैं?
समिति की स्थापना 1976 में आधिकारिक भाषा अधिनियम, 1963 के तहत की गई थी. इसमें 30 सांसद शामिल हैं – 20 लोकसभा से और 10 राज्यसभा से. इसका गठन आधिकारिक उद्देश्यों के लिए हिंदी के उपयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करने और राष्ट्रपति को सिफारिशें पेश करने के लिए की गई थी.

समिति आमतौर पर पांच साल में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करती है, लेकिन इस बार तीन साल के भीतर दो रिपोर्ट प्रस्तुत की गईं. रिपोर्ट को स्वीकार करना या न करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है.

कैटेगरी ए, बी और सी
इसमें भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को हिंदी के प्रगतिशील उपयोग के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया गया है.

कैटेगरी ए: उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह श्रेणी ‘ए’ में हैं.

कैटेगरी बी: गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़, दमन और दीव और दादरा और नगर हवेली श्रेणी ‘बी’ में हैं.

कैटेगरी सी: शेष भारत – जम्मू और कश्मीर, पूर्वोत्तर और दक्षिणी राज्य – श्रेणी ‘सी’ में हैं.

संसद की आधिकारिक भाषा समिति ने सुझाव दिया है कि हिंदी को ‘ए’ श्रेणी के राज्यों में सम्मानजनक स्थान दिया जाना चाहिए और इसका 100% उपयोग किया जाना चाहिए. हिंदी भाषी राज्यों में आईआईटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी होना चाहिए और भारत के अन्य हिस्सों में उनकी संबंधित स्थानीय भाषा, समिति ने सिफारिश की.

समिति के उपाध्यक्ष महताब ने पिछले महीने कहा था कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों में हिंदी का उपयोग केवल 20-30% हो रहा है, जबकि इसे 100% होना चाहिए.

स्टालिन का विरोध
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके केरल समकक्ष पिनराई विजयन ने समिति की सिफारिश का कड़ा विरोध किया है, दोनों ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है.

तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके के अध्यक्ष स्टालिन ने इसमें एक सिफारिश पर खास तौर पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया कि ‘युवाओं को कुछ नौकरियों के लिए तभी पात्र माना जाएगा जब उन्होंने हिंदी पढ़ी हो, और भर्ती परीक्षाओं में अंग्रेजी को अनिवार्य विषय के रूप में हटाने का प्रस्ताव है.’

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